नौसेना में शामिल हुई स्कॉर्पीन क्लास पनडुब्बी खंडेरी, रक्षा मंत्री बोले- 26/11 जैसी साजिश नहीं होगी कामयाब

मुंबई। स्कॉर्पीन श्रेणी की एक और पनडुब्बी INS Khanderi शनिवार को नौसेना में शामिल हो गई। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की मौजूदगी में इसे नौसान बेड़े में शामिल कर लिया गया। इसके साथ ही राजनाथ सिंह ने पाकिस्तान को साफ शब्दों में कहा कि सरकार मजबूत इरादों और नौसान की बढ़ी हुई ताकत के साथ हम उसे कोई भी गलत कदम उठाने पर बड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं।


रक्षा मंत्री ने यह भी कहा कि कुछ ऐसी ताकतें हैं जिनकी हसरतें नापाक हैं। वो साजिश रच रहे हैं कि समुद्र के रास्ते एक और 26/11 जैसा आतंकी हमला तटिय इलाकों में कर सकता है लेकिन उसके इरादे किसी भी तरीके से कामयाब नहीं होगी।


मुंबई का मझगांव डॉक इसका गवाह बना। यह पनडुब्‍बी एंटी मिसाइल से लेकर परमाणु क्षमता से लैस है। भारत दुनिया के उन चुनिंदा देशों में शामिल है जो परंपरागत पनडुब्बियों का निर्माण करते हैं। भारतीय नौसेना के प्रोजेक्ट 75 के तहत एमडीएल में फ्रांस के मैसर्स डीसीएनएस के साथ मिलकर छह पनडुब्बियों का निर्माण किया जा रहा है।


कलवरी की विशेषताएं


 


कलवरी और खंडेरी पनडुब्बियां आधुनिक फीचर्स से लैस है। यह दुश्मन की नजरों से बचकर सटीक निशाना लगा सकती हैं। इसके साथ ही टॉरपीडो और एंटी शिप मिसाइलों से हमले भी कर सकती हैं। ये सबमरीन पानी के भीतर और पानी से किसी भी युद्धपोत को ध्वस्त करने की क्षमता रखती हैं। यह पानी के भीतर 45 दिन गुजार सकती है और। यह एक घंटे में 35 किलोमीटर की दूरी आसानी से तय कर सकती है। 67 मीटर लंबी, 6.2 मीटर चौड़ी यह पनडुब्बी 1550 टन वजनी है। इसमें 36 से अधिक नौसैनिक रह सकते हैं। दुश्मन सेना के छक्के छुड़ाने की ताकत रखने वाली खंडेरी सागर में 300 मीटर की गहराई तक जा सकती है। कोई भी रेडार इसका पता नहीं लगा सकता है।


50 साल पहले शुरु की गई थी पनडुब्‍बी शाखा


 


भारतीय नौसेना की पनडुब्बी शाखा इस साल आठ दिसंबर को 50 साल पूरे करेगी। आठ दिसंबर 1967 को नौसेना में पहली पनडुब्बी आइएनएस कलवरी शामिल होने के उपलक्ष्य में हर साल इस दिन को पनडुब्बी दिवस के तौर पर मनाया जाता है। सात फरवरी 1992 को पहली स्वदेश निर्मित पनडुब्बी आइएनएस शाल्की के शामिल होने के साथ ही भारत पनडुब्बी बनाने वाले देशों के समूह में शामिल हो गया था। इसके बाद आइएनएस शांकुल को 28 मई 1994 को लॉन्‍च किया गया।


इसलिए सबमरीन का नाम पड़ा 'खंडेरी'


 


खांडेरी नाम मराठा बलों के द्वीपीय किले के नाम पर दिया गया है। इसकी 17वीं सदी के अंत में समुद्र में मराठा बलों का सर्वोच्च अधिकार सुनिश्चित करने में बड़ी भूमिका थी। इस सबमरीन से टारपीडो के जरिए भी दुश्‍मन पर अटैक किया जा सकेगा। सममरीन पानी में हो या सतह पर दोनो ही स्थितियों में इसकी ट्यूब प्रणाली एंटी सिप मिसाइल लॉन्‍च कर सकती है। सबमरीन को ऐसे डिजाइन किया गया है कि वो हर जगह चल सके।


इस सबमरीन के जरिए नेवल टास्‍क फोर्स भी दुश्‍मनों पर कभी भी कहीं से भी हमला करने में सक्षम होगी। इस पनडुब्‍बी को माड्यूलर कंस्‍ट्रेक्‍शन को ध्‍यान में रख कर बनाया गया है। इसके तहत सबमरीन को कई सेक्‍शन में डिवाइड किया जा सकता है।